कभी सड़कों पर किया थिएटर, ऑर्केस्ट्रा में गाया गाना, ऐसे गुजरे हैं प्रधानजी के मुफलिसी के दिन..
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रघुबीर यादव एक लंबे समय से इंडस्ट्री में सक्रिय हैं. कई बार अप्स ऐंड डाउन मोमेंट रहे हैं. अपनी इस जर्नी पर रघुबीर कहते हैं, मैं जब भी सोचता हूं, तो गद-गद हो जाता हूं कि जबलपुर के एक छोटे से कस्बे से आए इंसान को यहां कितना कुछ मिला है.
क्या आपको पता है रघुबीर एक्टर बनने की ख्वाहिश में घर से भाग गए थे. पारसी थिएटर में एक्टिंग की कड़ी तपस्या के बाद उन्हें फिल्म मिली मैसी साहब, जिसने उन्हें बेस्ट इंटरनैशनल अवॉर्ड दिलवाया. इस अवॉर्ड को जीतने के बाद लगभग बीस साल बाद रघुबीर अपने घर लौटे थे. अपनी करियर जर्नी, डूज-डोंट के बारे में उन्होंने हमसे ढेर सारी बातचीत की है.
एक्टिंग की दुकान बंद हुई, तो खटिया बनाकर गुजारा कर लूंगा
रघुबीर यादव एक लंबे समय से इंडस्ट्री में सक्रिय हैं. कई बार अप्स ऐंड डाउन मोमेंट रहे हैं. अपनी इस जर्नी पर रघुबीर कहते हैं, मैं जब भी सोचता हूं, तो गद-गद हो जाता हूं कि जबलपुर के एक छोटे से कस्बे से आए इंसान को यहां कितना कुछ मिला है. हालांकि मुंबई में इतने सालों तक रहने के बावजूद मैंने अपने अंदर का देसीपन कभी खत्म नहीं होने दिया है. जब भी लगता है कि शहरीकरण मुझपर हावी हो रहा है, तो महीनेभर की छुट्टी लेकर जबलपुर चला जाता हूं और वहां एनर्जी इक्ट्ठी कर वापस आता हूं. मैं वहां जाकर खटिया, बांसुरी बनाता हूं, लकड़ी के सामान से कुछ बनाता रहता हूं. अगर एक्टिंग का काम बंद हो जाएगा, तो मैं खटिया बनाने लगूंगा. साल में दो चक्कर तो जरूर लगते हैं. दीवाली और होली मैं वहीं रहता हूं. इन दो फेस्टिवल का मेरी जिंदगी में गहरा असर रहा है. उन दिनों रामलीला, रासलीला हुआ करता था, वहीं सबकुछ देखकर एक्टिंग का कीड़ा जगा था.
वो महिला पार्टी के बीच में कहने लगी, आपको शर्म नहीं आती
मैं इतने सालों से इंडस्ट्री में काम करता रहा हूं लेकिन यूथ के बीच में पहचान मुझे पंचायत ने दिलवाई है. हालांकि एक लंबा इंतजार रहा है इस तरह के प्यार और एक्सेप्टेंस का. मुझे लड़ाई बहुत करनी पड़ी है. बहुत मशक्कत करनी पड़ी है. मुझे तो बहकाने वाले कई लोग थे. लोग चाहते थे कि मैं कमर्शल ट्रैक पर जाऊं. मैं गया नहीं क्योंकि मुझे एक किस्सा याद है, जो शायद मैं जिंदगीभर न भूल पाऊं. इस किस्से ने मेरी जिंदगी बदल दी और मुझे हिम्मत दी है कि मैं अपनी ही मर्जी से काम करूं. जब मैं नया-नया मुंबई आया, तो ऐसी वाहियात सी फिल्म कर दी थी. जिसे शूट करते हुए मुझे भी शर्म आ रही थी. उस फिल्म में कई बड़े नाम भी थे. फिल्म रिलीज होने के बाद मैं किसी फंक्शन में गया था. वहां एक महिला ने मुझे जोर से चिल्लाते हुए कहती है कि आपको शर्म नहीं आती है. मेरे तो होश उड़ गए थे. मैं सोचने लगा कि आखिर मैंने ऐसा क्या कर दिया. वो कहने लगी कि आप जरा यहां आईए, मुझे आपसे बात करनी है. मैं उन्हें जानता तक नहीं था. वो कहने लगीं, आपको शर्म नहीं आती.. उसने फिल्म का नाम लेते हुए कहा कि आपको ये करने की क्या जरूरत थी. हम आपको ऐसी फिल्मों में नहीं देख सकते हैं. मैंने जवाब में कहा कि मैं मुंबई में नया आया हूं और मुझे घर भी चलाना पड़ता है. वो कहने लगी कि आप भूखे मर जाइए लेकिन इस तरह की फिल्में न करें. उसी दिन से मैंने निर्णय लिया कि भले भूखा मर जाऊंगा लेकिन ऐसी फिल्में नहीं करूंगा.
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