आम्बेडकर: रात भर क़िताबें पढ़ते और फिर सवेरे अख़बारों में रम जाते - विवेचना
BBC
आज भीमराव आम्बेडकर की 130वीं जयंती है. इस मौक़े पर उनके मानवीय पक्ष पर रोशनी डाल रहे हैं रेहान फ़ज़ल.
दिलचस्प बात है कि भारत की दो महान शख्सियतों भीमराव आम्बेडकर और महात्मा गांधी के बीच कभी नहीं बनी. दोनों के बीच कई मुलाकातें हुई लेकिन वो अपने मतभेदों को कभी पाट नहीं पाए. आज़ादी से दो दशक पहले आम्बेडकर और उनके अनुयायियों ने ख़ुद को स्वतंत्रता आंदोलन से अलग कर लिया था. वो अछूतों के प्रति गांधी के अनुराग और उनकी तरफ से बोलने के उनके दावे को जोड़-तोड़ की रणनीति मानते थे. जब 14 अगस्त 1931 को गांधी से उनकी मुलाक़ात हुई, तो गांधी ने उनसे कहा "मैं अछूतों की समस्याओं के बारे में तब से सोच रहा हूँ जब आप पैदा भी नहीं हुए थे. मुझे ताज्जुब है कि इसके बावजूद आप मुझे उनका हितैशी नहीं मानते?" धनंजय कीर आम्बेडकर की जीवनी 'डॉक्टर आम्बेडकर: लाइफ़ एंड मिशन' में लिखते हैं, "आम्बेडकर ने गांधी से कहा अगर आप अछूतों के ख़ैरख़्वाह होते तो आपने कांग्रेस का सदस्य होने के लिए खादी पहनने की शर्त की बजाए अस्पृश्यता निवारण को पहली शर्त बनाया होता." "किसी भी व्यक्ति को जिसने अपने घर में कम से कम एक अछूत व्यक्ति या महिला को नौकरी नहीं दी हो या उसने एक अछूत व्यक्ति के पालनपोषण का बीड़ा न उठाया हो या उसने कम से कम सप्ताह में एक बार किसी अछूत व्यक्ति के साथ खाना न खाया हो, उसे कांग्रेस का सदस्य बनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए थी. आप ने कभी भी किसी ज़िला कांग्रेस पार्टी के उस अध्यक्ष को पार्टी से निष्कासित नहीं किया जो मंदिरों में अछूतों के प्रवेश का विरोध करते देखा गया हो."More Related News