आजतक की मुहिम का असरः अपने वतन लौटे ओनिबा और शरीक, ऐसे साबित हुई बेगुनाही
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यकीनन ऐसी मिसालें बेहद कम मिलती हैं. जब देश से दूर विदेश में कोई बेगुनाह हिंदुस्तानी जेल में बंद हो और उसे वापस भारत लाने के लिए एक साथ कई सरकारी एजेंसियां जुट जाएं. ओनिबा और शरीक की रिहाई और वतन वापसी के लिए ऐसा ही हुआ.
आखिरकार आजतक की मुहिम रंग लाई. कतर में फंसे ओनिबा और शरीक अपने मुल्क, अपने घर लौट आए. आजतक पिछले साल से ही लगातार ओनिबा और शरीक को आजाद कराने के लिए मुहिम चला रहे थे. उस ओनिबा और शरीक के लिए जो बेगुनाह होते हुए भी पिछले दो साल से कतर की जेल में बंद थे. इसी दौरान ओनिबा ने वहां एक प्यारी से बेटी को जन्म दिया. ओनिबा और शरीक की रिहाई और वतन वापसी के लिए नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो समेत प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और कतर में मौजूद भारतीय दूतावास ने मिलकर काम किया. 15 अप्रैल, रात 2.30 बजे, मुंबई एयरपोर्ट लगभग 2 साल बाद ओनिबा और शरीक ने जब मुंबई की सरज़मीन पर क़दम रखा, तो ना सिर्फ़ उनकी दुनिया बदल चुकी थी, बल्कि दो साल पहले जिस दुनिया को वो छोड़ कतर पहुंचे थे, वो दुनिया भी बदली हुई थी. पिछले करीब डेढ़ सालों से पूरी दुनिया कोरोना की चपेट में है. कोरोना ने जीने के रंग-ढंग बदल डाले हैं. ये बदला हुआ ज़माना ओनिबा और शरीक के लिए चौंकानेवाला था. क्योंकि करीब दो साल तक कतर की जेल में बंद रहने की वजह से उन्हें मालूम ही नहीं था कि इन दो सालों में दुनिया कितनी बदल चुकी है. लेकिन इन तमाम बदलाव के बावजूद मास्क के पीछे छुपे चेहरे से तब भी ओनिबा और शरीक की खुशियां टपक रही थी. टपकती भी क्यों नहीं?सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह रही कि खींवसर को तीन क्षेत्रों में बांटकर देखा जाता है और थली क्षेत्र को हनुमान बेनीवाल का गढ़ कहा जाता है. इसी थली क्षेत्र में कनिका बेनीवाल इस बार पीछे रह गईं और यही उनकी हार की बड़ी वजह बनी. आरएलपी से चुनाव भले ही कनिका बेनीवाल लड़ रही थीं लेकिन चेहरा हनुमान बेनीवाल ही थे.
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